दोपहर का समय था। घर का काम निपटा कर, अभी मिसेज त्रिपाठी, लिविंग रूम में जाकर बैठी ही थीं, कि घर की डोरबेल बजती है। उन्होंने दरवाजा खोला, तो उनकी पड़ोसन थी। उन्होंने, उसे अंदर बुलाया और दोनों बातें करने लगीं। वो पड़ोसन कहती है कि हमारी एक मन्नत पूरी हुई थी, इसलिए हम, मंदिर गए थे। यहां से 500 किलोमीटर दूर है। ट्रेन की टिकेट बुक की, लेकिन ट्रेन मिस हो गई। सोचा गाड़ी में जाएंगे, आगे गाडि़यों की हड़ताल लगी थी। एक के बाद, एक मुसीबत आई, लेकिन हमने ठान लिया था की कैसे भी पहुंचना है। इसलिए, अंत में बस लेने का सोचा। बस्टॉप पहुंचे, तो सौभाग्य से हमें, बस मिल गई।
लेकिन अभी 150 किलोमीटर का सफर बाकी था, कि बस का टायर पंचर हो गया। घंटो तक लिफ्ट मांगते रहे, उसके बाद, कहीं जाकर मंदिर पहुंचे! तब मिसेज त्रिपाठी सोचने लगीं कि - इतनी मुश्किलें आई, सफर ने उन्हें थका दिया था, लेकिन फिर भी वो यात्रा करके, वापस लौटे हैं। असल में, आस्था, विश्वास और प्रेम, एक ऐसी शक्ति है, जो आपसे कुछ भी करवा सकती है।